मुकामिल जो होगी मेरे सपनो की
मानिंद ,
अनसुनी सी उस फ़रियाद पे लिखता
हूँ .
ये लोगों के जमघट में मिलना
तुझी से ,
इस बरपे हुए इतिफाक पे लिखता
हूँ .
इक अंधे को वो जो तू जलवे दिखा गई ,
मैं अनहोनी सी उस करामात पे
लिखता हूँ .
सांस सांस के साथ जो थी दिल में
उत्तारी ,
वो अनपढ़ी
हुई इक नमाज़ पे लिखता
हूँ .
जो प्यासा और कर गई वो थोड़ी
सी
बारिश ,
इस सेहरा पे बरसी बरसात पे लिखता
हूँ ....(गुर्ब्रिंदर )
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