Sunday, May 8, 2011

लिखता हूँ .....सियासत पे .

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जहाँ मज़हब के नाम पे दुकाने हैं चलती ,,

मैं क़त्लो -गारत के कारोबार पे लिखता हूँ .

बगल मैं छुर्री जो छुप्पा के है रखता ,,

ऐसे हर ढोंगी शैतान पे लिखता हूँ .

जहाँ साधू और मोलवी सियासत हैं करते ,,

इक बेबस अवाम के हशारात पे लिखता हूँ .

जहाँ खून है सस्ता और पानी है महंगा ,,

गली गली में लगते उस बाज़ार पे लिखता हूँ .

जो मूँद कर आँखें हैं सब कुछ देखते ,,

मैं ऐसे लाचार अफ्सरात पे लिखता हूँ .

'मुरीद ' वो सच जो दुनिया यह सुन नही सकती ,,

किसी खंडहर की पिछली दीवार पे लिखता हूँ ...(गुर्ब्रिंदर )

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