मुसाफिर रेल गाड्डी में मिलते हों जैसे ,
पल भर की उस मीठी मुलाक़ात पे लिखता हूँ .
हजारों अन -पूछे सवाल
ज़हन
में उठायमैं अपनी अधूरी मालूमात पे लिखता हूँ .
दुबारा किस मोड़ पे तुझ से होगा मेरा मिलना ,
उन अनजाने चौराहों के तसवुरात पे लिखता हूँ .
हाथों में हाथ लिए हमसफ़र हों गुज़रें ,
नामुमकिन से दीखते इस ख्वाब पे लिखता हूँ .
वो छोटे से अरसे में जो 'मुरीद ' बना गई ,
उस मित्र प्यारे की सलाहियत पे लिखता हूँ ...(गुर्ब्रिंदर )
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